मंगलवार, 11 जनवरी 2011

संपर्कों की पूँजी ही वास्तविक पूँजी

खा-कमा तो सभी लेते हैं. जिसने अपने जीवन में संपर्क जाल जितना अधिक बना लिया वह उतना ही धनी है. केवल अपने अनुयायी बनाते रहना अथवा केवल अपनी पहचान चिह्नित करवाने की दौड़ लगाना पर्याप्त नहीं. अपने लगातार बढ़ते परिचितों की विशेषताओं और अहमियत से परिचित होना भी संचित संपर्कों का हिस्सा होना चाहिए.

3 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha aapne kamana khana to janwar bhi karte hai insaan ko insaan banne ki kosiss karni
    chahiye

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  2. आदरणीय,
    उपदेश गंगा बहती रहनी चाहिये।
    ब्लॉग रॉल में सहेज रहा हूँ आपका ब्लॉग, आशा है ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने का मौका मिलता रहेगा। पिछली पोस्ट को महीने भर से ज्यादा हो चुका है।
    धन्यवाद।

    एक और निवेदन, वर्ड वैरिफ़िकेशन टिप्पणी में अवरोध पैदा करता है, हटा देंगे तो सुविधाजनक रहेगा(टिप्पणीकर्ताओं के लिये)।

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