मंगलवार, 11 जनवरी 2011

संपर्कों की पूँजी ही वास्तविक पूँजी

खा-कमा तो सभी लेते हैं. जिसने अपने जीवन में संपर्क जाल जितना अधिक बना लिया वह उतना ही धनी है. केवल अपने अनुयायी बनाते रहना अथवा केवल अपनी पहचान चिह्नित करवाने की दौड़ लगाना पर्याप्त नहीं. अपने लगातार बढ़ते परिचितों की विशेषताओं और अहमियत से परिचित होना भी संचित संपर्कों का हिस्सा होना चाहिए.