गुरुवार, 10 मार्च 2011

समानता का अधिकार ....... आज केवल नारा बन कर रह गया है


संविधान में जिस भावना से केवल १० वर्षों के लिए आरक्षण दलितों के लिए लागू किया था ६० वर्षों में वह उद्देश्य पूरा हो गया है. आज दलित आर्थिक व शिक्षा की दृष्टि से संपन्न है. यदि आरक्षण इसी प्रकार बढाया जाता रहा तो देश विभिन्न जातियों, समुदायों व वर्गों में विभाजित तो हो ही गया है कहीं द्वेष व वैमनस्य के गर्त में न चला जाए. अयोग्य को आरक्षण देने से योग्य नहीं बनाया जा सकता बल्कि आरक्षण योग्य व्यक्ति को आगे जाने से रोकता है. संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार के तहत कोई छोटा-बड़ा नहीं. 

समानता का अधिकार
फिर क्यों :
[1] योग्यता के आधार पर सवर्ण व्यक्ति को मिल सकने वाली नौकरी छीनकर आरक्षित जाति के अयोग्य व्यक्ति को दे दी जाती है. 
[2] सरकारी या अर्द्ध-सरकारी क्षेत्र में वरिष्ठ सवर्ण कर्मचारी की तुलना में आरक्षित कनिष्ठ कर्मचारी को पदोन्नति देकर सीनियर कर दिया जाता है.
[3] सवर्ण योग्य युवक बेरोजगार घूमता है जबकि अयोग्य आरक्षित जाति का युवक तुरंत नौकरी पा जाता है. 
[4] सरकारी स्तर पर प्राप्त होने वाली एजेंसी या तार्किक सहायता जाति विशेष के आधार पर दी जाती है न की योग्यता और आवश्यकता के आधार पर. 
[5] नौकरी के लिए आवेदन करने पर सवर्णों से आवेदन शुल्क के रूप में भारी राशि ली जाती है जबकि आरक्षितों से कोई राशि नहीं ली जाति, यदि ली भी जाती है तो न्यूनतम, भले ही वह आई.ए.एस. या आई.पी. एस. का ही बेटा-बेटी क्यों न हो. 
[6] साक्षात्कार में जाने के लिए सवर्ण युवक अपना मार्ग व्यय देकर जाता है जबकि आरक्षित युवक की रेल विभाग निःशुल्क यात्रा व्यवस्था करता है या उसे तत्संबंधित विभाग से मार्ग-व्यय मिलता है. 
[7] चुनाव क्षेत्र को आरक्षित कर सवर्गों के समस्त राजनैतिक अधिकार छीन लिए गए हैं. इन क्षेत्रों से ग्राम पंचायत से लेकर एम.एल.ए., एम.पी. तक का चुनाव कोई सवर्ण नहीं लड़ पाता. 

— ये सब संविधान प्रदत्त मानव अधिकारों का हनन नहीं तो और क्या है? समानता का अधिकार मात्र नारा भर रह गया है. 

...... अन्य मौलिक अधिकारों पर बाद में चर्चा करते हैं. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक स्तर होना चाहिये और स्वरूप में बराबर अवसर की उपलब्धता। वोटों की राजनीति जो न करवाये, वो थोड़ा है।
    अनुरोध है कि वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा दीजिये, टिप्पणी करने में सुविधा रहती है।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति , आभार .

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  3. भारत के समाज मे कभी समानता का अधिकार नहीं रहा है. इस असमानता को पाटने के लिए संविधान ने जिन काउंटर मीजर्स को लागू किया है, उन्हे आप "असमानता" कह रहे हैं!! ये सिर्फ़ भेदभावी सोच का ही परिणाम है की जो आप देश की 80% जनसंख्या के साथ कर रहे हैं, वो असमानता आपको कभी नहीं लगा और जब देश का संविधान सबको समान बनाने के लिए प्रयासरत है, तो आपको ये गंवारा नही है. आपको इससे अपने वर्चश्व को ख़तरा लग रहा है. वो वर्चश्व जो इंसान को दलित बनाकर कायम रखा गया है, अशिक्षित और अपंग बना कर रखा गया है..

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  4. जो नौकरी एक आरक्षित वर्ग का व्यक्ति हासिल करता है, वो किसी भी तरह से सवर्ण की नौकरी नहीं होती, तो छीनने का तो सवाल ही नहीं उठता. कृपया अपनी सोच को परिपक्वता दें और ये सोच छोद दें की सारी दुनिया पर आपका ही कब्जा है. आपको इस तरह की ग़लत पोस्ट नहीं डालनी चाहिए की एक दलित सवर्ण की सीट लेता है. जो सीट आपके लिए उपलब्ध ही नहीं थी, वो आपकी कैसे हो गयी ?

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  5. [2] सरकारी या अर्द्ध-सरकारी क्षेत्र में वरिष्ठ सवर्ण कर्मचारी की तुलना में आरक्षित कनिष्ठ कर्मचारी को पदोन्नति देकर सीनियर कर दिया जाता है.

    क्यों कर दिया जाता है, इस पर भी गौर कीजिए. पोस्टिंग के बाद एक आरक्षित वर्ग की प्रमोशन विभागीय रूप से उन्ही लोगों पर निर्भर हो जाती है जो आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को देखना ही नहीं चाहते. उपर से हर संभव प्रयास किए जाते रहे हैं की दलित कॅडिडेट का प्रमोशन ना हो, नहीं तो सामान्य वर्ग के पांडे जी को उनके अंदर मे काम करने का ब्रह्म पाप उठना पड़ेगा.

    आप लोगों ने अपने परंपरागत कर्मों से सरकार को बेबाश कर दिया और आख़िर दलितों पिछड़ों को भी प्रमोशन मे उनका हक दिलाने के लिए, ताकि वो भी नीतिगत फ़ैसले ले सकें, अपने कार्य को अपने उपर बैठे पांडे जी के अनुसार नहीं, बल्कि नियम क़ानून के मुताबिक कर सकें, सरकार ने प्रमोशन मे भी आरक्षण लागू कर दिया.

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  6. [3] सवर्ण योग्य युवक बेरोजगार घूमता है जबकि अयोग्य आरक्षित जाति का युवक तुरंत नौकरी पा जाता है.

    - आप कौन हैं ये डिसाइड करने वाले की आपकी जाती का ही व्यक्ति योग्य होता है और आरक्षत् वर्ग का उम्मीदवार अयोग्य होता है?

    अगर आरक्षण नहीं होगा तो क्या हर सवर्ण (योग्य सवर्ण) नौकरी पा जाएगा? क्या इस देश की 2 करोड़ कुल सरकारी नौकरियों के हिसाब से देश मे केवल 2 करोड़ ही योग्य सवर्ण हैं? मेरा तो मानना है की करीब 30 करोड़ सवर्ण ऐसे होंगे जो नौकरी लेने की हालत मे होंगे. तो क्या बाकी 28 करोड़ की नौकरी आरक्षण की वजह से रुकेगी?

    आरक्षण 50% के लगभग है, मतलब करीब 1 करोड़ नौकरिया अपने लाइफ स्पॅन मे आरक्षित हैं, तो कैसे हर आरक्षित वर्ग के कॅंडिडेट को तुरंत नौकरी मिल जाएगी जबकि उनकी जनसंख्या तो आपकी "योग्य" जाती से कई बुना है. तोड़ा सोच समझ कर लिखो जनाब!

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  7. [4] सरकारी स्तर पर प्राप्त होने वाली एजेंसी या तार्किक सहायता जाति विशेष के आधार पर दी जाती है न की योग्यता और आवश्यकता के आधार पर.

    -जब आपने भेदभाव जाती के आधार पर किया है तो उससे पैदा हुई बहडाओं को पार करने के लिए सुविधाएँ किस आधार पर दें? जिन्हे जाती के आधार पर सहायात दी जाती है, उनमे क्या कोई योग्य नहीं होता? कुए के मेन्ढक हैं आप जनाब, बाहर निकालिए, दुनिया बदल रही है और आप अपना वही पुराना राग लिए बैठे हैं.

    जाती पाती छोड़िए और देखिए की कैसे समानता आती है कुछ सौ सालों मे ही. कुछ सौ साल इसलिए क्योंकि सिर्फ़ समान मान लेने से कोई समान नहीं हो जाता, जो आज आसमान हैं, उनके पास ज़मीन जायदाद कुछ नहीं है, वो सब आपके पास चली गयी, क्योंकि आपमे लूटने की योग्यता थी और दूसरों को लुटवाने की भी. सबसे कमजोर दलित थे जिनके हिस्से सिर्फ़ सेवा ही आई. सेवा बंद कर देंगे तो क्या करेंगे बेचारे?

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  8. बाकी के जवाब फिर कभी दूँगा. अलविदा वशिष्ठ साब!

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